Darbhanga: Maharaja Kameshwar Singh dedicated his entire property for the welfare of the people, know the story of fame and glory
Know the story of Kameshwar Singh, the most famous king of Darbhanga Raj
Desk: देश के रजवाड़ो में दरभंगा राज का हमेशा अलग स्थान रहा है, दरभंगा अपने समृद्ध अतीत और प्रसिद्ध दरभंगा राज के लिए जाना जाता है यह रियासत बिहार के मिथिला और बंगाल के कुछ इलाकों में कई किलोमीटर के दायरे तक फैला था, दरभंगा राज्य के आखिरी राजा कामेश्वर सिंह गौतम बहादुर तो अपनी शानो शौकत के लिए पुरी दुनिया में विख्यात थे, अंग्रेजो ने इन्हे महाराजाधिराज की उपाधि दी थी।
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मधुबनी पेंटिंग कला इसका उदाहरण
दरभंगा महाराज संगीत और अन्य ललित कलाओं के बहुत बड़े संरक्षक थे, मधुबनी पेंटिंग कला इसका उदाहरण है, 18वीं सदी से ही दरभंगा हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत का बड़ा केंद्र बना था, उस्ताद बिस्मिल्ला खान, गौहर खान, पंडित रामचतुर मल्लिक, पंडित रामेश्वर पाठक और पंडित सियाराम तिवारी दरभंगा से जुड़े विख्यात संगीतज्ञ थे, बिस्मिल्ला खान तो कई वर्षों तक दरबार में संगीतज्ञ रहे, कहते हैं की उनका बचपन दरभंगा में ही बिता था।
जमाने के साथ चलने की थी हूनर
राज दरभंगा ने नए जमाने के रंग को भापकर कई कंपनियों की शुरुआत की थी नील के व्यवसाय के अलावा महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह ने चीनी मिल, कागज मिल आदि खोलें, इससे बहुतों को रोजगार मिला और राज सिर्फ किसानों से खिराज की वसूली पर ही नहीं आधारित रहा, आय के अन्य स्रोत बने इससे स्पष्ट होता है की दरभंगा नरेश आधुनिक सोच के व्यक्ति थे।
पत्रकारिता के क्षेत्र में भी किए महत्वपूर्ण कार्य
पत्रकारिता के क्षेत्र में भी दरभंगा महाराज ने महत्वपूर्ण काम किया उन्होंने न्यूज़पेपर एंड पब्लिकेशन प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना की और कई अखबार और पत्रिकाओं का प्रकाशन शुरू किया अंग्रेजी में ‘द इंडियन नेशन’, हिंदी में ‘आर्यावर्त’ समाचार पत्र और मैथिली मेंमिथिला मिहिर’ साप्ताहिक मैगज़ीन के प्रकाशन किया एक जमाना था जब बिहार में आर्यावर्त अखबार सबसे लोकप्रिय अखबार था।
कई विश्वविद्यालय निर्माण में किया सहयोग, दरभंगा महाराज की संपत्ति
दरभंगा महाराज कामेश्वर सिंह ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय के निर्माण के लिए 50 लाख रुपए दान दिया था पटना में बना अपना दरभंगा हाउस इस राज परिवार ने पटना विश्वविद्यालय को दान में दे दिया था, इसके अलावा कोलकाता विश्वविद्यालय, प्रयाग विश्वविद्यालय, पटना विश्वविद्यालय और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के निर्माण के लिए भी इस परिवार ने महत्वपूर्ण आर्थिक योगदान किया है, महाराज कामेश्वर सिंह ने दरभंगा का अपना महल ‘आनंद बाग पैलेस’ और ‘पुस्तकालय’ संस्कृत विश्वविद्यालय को दे दिया, आज ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय और संस्कृत विश्वविद्यालय दरभंगा राज के भवनों में ही चल रहा है।
लंदन के बकिंघम पैलेस के तर्ज पर बनवाया था “नरगोना पैलेस”
दरभंगा के महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह की ख्याति आज भी चर्चा का विषय है ललित नारायण मिश्रा विश्वविद्यालय भवन के ठीक बगल में बना ‘नरगोना पैलेस’ अपने आप में अनूठा है सफेद संगमरमर से बना भवन लंदन के बकिंघम पैलेस की याद दिलाता है कहा जाता है की उस समय महाराजा कामेश्वर सिंह ने इस पैलेस का निर्माण अपने निवास स्थान के रूप में कराया था, महाराजाधिराज की ख्याति इतनी थी की बिहार की पहली ट्रेन जो समस्तीपुर से खुलती थी, उसका अंतिम स्टेशन महाराजा कामेश्वर सिंह के निवास स्थान नरगोना पैलेस तक आती थी, नरगोना पैलेस के ठीक बगल में स्टेशन का प्लेटफार्म आज भी लोगों के लिए कोतुहल का विषय है, बिहार में पहली रेल पटरी 1874 में दरभंगा महाराज के पहल और दान से बनी थी।
दिल्ली के तर्ज पर हुबहू दरभंगा में भी है दरभंगा लाल किला
दरभंगा में भी लाल किला है जो पुरी तरह दिल्ली के लाल किले के तर्ज पर बनाया गया है महाराज ने 85 एकड़ जमीन पर एक आलीशान किला का निर्माण किया था 1934 की भूकंप के बाद किले का काम शुरू हुआ था, जो सालों तक चलता रहा, किले के तीनों तरफ लगभग 90 फीट ऊंची दीवार थी, जो लाल किले से ऊंची है, दरभंगा का किला लाल किला जैसा दिखता था, तभी से इसे दरभंगा का लाल किला कहा जाने लगा, दरभंगा महाराज की पूरी विरासत आज खतरे में है, यह खंडहरों में तब्दील हो रही है, ऐसे में सरकार के साथ-साथ आमजनो को भी इसे को बचाने के लिए प्रयास करना चाहिए।