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सूबे में शराबबंदी कानून लागू होने के बाद राज्य सरकार के द्वारा इस पर दो बार संशोधन किया जा चुका है और कई बार मुख्यमंत्री ने इस कानून पर समीक्षा बैठक की है लेकिन अब तक ठोस ढंग से लागू करने में सरकार कोई भी सकारात्मक परिणाम नहीं निकाल पाई है इस कानून की वजह से जेल में भी बड़ी संख्या में गरीब और दलित लोग बंद है हाल यह है कि उन्हें कोई जमानतदार भी नहीं मिल रहा।
अपने पत्र में श्रवण अग्रवाल 22 प्वाइंट को लिखा है जिसमें जेल में बंद वैसे गरीब और दलित की रिहाई के लिए सरकार से कानून दिलाने की सहायता की मांग की है जिसे जमानतदार नहीं मिल रहे जो बिहार के अलग-अलग जेलों में बंद है मुख्यमंत्री पर सवाल उठाते हुए उन्होंने पूछा कि आपके द्वारा शराबबंदी की समीक्षा बैठक तो बात पहले भी की गई थी इस बात पर जोर दिया गया कि पुलिस प्रशासन एवं उत्पाद विभाग शराब पीने वालों से ज्यादा इसे बनाने वाले और तस्करी करने वालों को विशेष स्तर पर कार्रवाई करें, क्या यह शराबबंदी कानून के मामले में विरोधाभास उत्पन्न नहीं करता है, राष्ट्रीय प्रवक्ता का आरोप है कि इससे स्पष्ट होता है राज्य में शराब बंदी कानून पूरी तरह से विफल है।