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भाकपा माओवादी संदीप यादव की मौत के बाद, बिहार झारखंड मध्य जोन की कमान को लेकर चर्चा में आठ हार्डकोर नक्सलियों के नाम

नक्सली

Bihar: भाकपा माओवादी संदीप यादव की मौत के बाद बिहार झारखंड के मध्य जोन की कमान की ताजपोशी किसके सिर होगी एक बड़ा सवाल भाकपा माओवादियों से लेकर सभी के बीच उठने लगा है सूत्रों के अनुसार भाकपा माओवादी एक 2 दिनों के भीतर या 3 दिनों का शोक मनाने के बाद घोषित कर देगा इसका ताना-बाना संगठन के अंदर बुना जाने लगा है, संगठन के सेंट्रल कमेटी से लेकर राज्य स्तर के नेता खासकर मिलिट्री ऑपरेशन से जुड़े नक्सली नाम फाइनल करने में जुट गए हैं।

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मिलिट्री दस्ते से जुड़े 8 लोगों के नाम चर्चा में है, वे सभी 8 लोग गया और औरंगाबाद से ताल्लुक रखते हैं इन सभी का जीवन बिहार और झारखंड के जंगलों में ही दिन-रात गुजरा है यह 8 नाम विवेक, अभ्यास, नितेश, गौतम, इंदल, अरविंद भुइयां, अभिजीत मुख्य रूप से शामिल है, ये सभी नक्सली अपने साथ एके 47 और एसके 53 जर्मन राइफल लेकर चलते हैं इनकी टुकड़ी के सदस्य भी इन्ही हथियारों को रखते हैं आठ नक्सलियों में एक नक्सली गौतम पासवान का नाम सबसे ऊपर है इसका कारण यह भी है कि गौतम पासवान हार्डकोर नक्सली है, संदीप भुंईया से अधिक वर्चस्व है यही वजह है कि मध्य जोन का प्रभार संदीप के साथ ही संगठन ने गौतम को दे रखी थी।

संदीप जातीय समीकरण की वजह से उसने अपना वर्चस्व संगठन के बाहर बना रखा था और अपनी चला रहा था उसके बॉडीगार्ड से लेकर सुरक्षा घेरे में रहने वाले मिलिट्री ऑपरेशन को अंजाम देने बालों में उसकी जाति के लोग अधिक हुआ करते थे गौतम उसका बतौर जूनियर काम कर रहा था, सूत्रों के अनुसार जिसकी भी बिहार झारखंड मध्य जोन के पद पर ताजपोशी होगी उसके नाम की घोषणा संगठन शीघ्र करने जा रहा है, पुलिस प्रशासन के बीच इस बात की सूचना उनके गांव में नक्सली पर्चा पड़ेगा किसी भी रात को इस बात की घोषणा नक्सली पर्चे के माध्यम हो सकती है ताकि संगठन में मजबूती बनी रहे, वे आगे की जिम्मेदारी भरे काम को पूरा करता रहे।

इनके आईडियोलॉजी प्रमोद मिश्रा जो सेंट्रल कोर कमेटी का बड़ा सदस्य होने के साथ ही बड़े ओहदे पर हैं अभी जिंदा है हर हाल में क्षेत्र में माओवादी विचारधाराजिंदा रखने के लिए नए आदमी को जिम्मेदारी सौंपेगा, सूत्र बताते हैं कि संगठन में संदीप यादव ने माओवादी सिद्धांतों से थोड़ा सा हट कर अपनी जाति को खासा तवज्जो दिया था, यही वजह है कि 10-12 वर्षों में संगठन कमजोर पड़ा और दूसरी जाति के कई हार्डकोर सदस्य या तो जेल चले गए या फिर मारे गए या मुठभेड़ में मारे गए या मुख्यधारा से जुड़ गए।

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