Bihar: पटना, नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के द्वारा अपने आवास पर संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा गया कि बिहार में चुनाव आयोग के द्वारा SIR के नाम पर लोकतंत्र को खत्म करने की साजिश की जा रही है। चुनाव आयोग बिना राजनीतिक दलों की सहमति के ही SIR कराने का निर्णय लिया, चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों के शिकायत और सुझाव को नहीं माना। जबकि इसके प्रक्रिया, टाइमिंग, दस्तावेज में आधार, जॉब कार्ड, राशन कार्ड और ईपीक नम्बर को शामिल करने का सुझाव राजनीतिक दलों की ओर से दिया गया था। ऐसा ही सुझाव चुनाव आयोग को माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने सुनवाई के दौरान दिया गया थ। किन्तु चुनाव आयोग ने न्यायालय की बातों को भी नहीं माना। चुनाव आयोग के द्वारा विधानसभा से नाम काटे जाने की सूचना दी जा रही है। इस तरह से कहीं न कहीं लोगों को भ्रम में रखा जा रहा है।
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यदि चुनाव आयोग ईमानदारी से मतदाता के प्रति कार्य किया होता तो बूथवार सूची जारी करता, जिससे कि सारे लोगों का विवरणी सामने आ जाता। आगे इन्होंने भागलपुर के सुलतानगंज विधानसभा का जिक्र करते हुए कहा कि पार्टियों को सूची तो उपलब्ध कराया गया है किन्तु यह नहीं बताया गया है कि किन कारणों से मतदाता के नाम काटे गए हैं। हर विधान सभा में 20 से 30 हजार मतदाता के नाम काटे गये हैं, जो पूरे बिहार भर में 65 लाख से अधिक नाम काटे गये हैं। चुनाव आयोग ने चालाकी से मतदाताओं के नाम भी काट दिया और उनकी सूची भी बूथवार पर नहीं उपलब्ध कराया। बहुत जगह तो ऐसा देखने को मिल रहा है कि मतदाताओं के नाम अंकित हैं लेकिन उनके इपिक नम्बर गायब हैं और उनका पता और बुथ नम्बर भी पता नहीं चल रहा है। चुनाव आयोग पूरी तरह से गोदी आयोग बन गया है। संदेह तब गहरा हो गया जब संख्या तो बता दी जा रही है लेकिन यह नहीं बताया जा रहा है कि किन बूथों पर कितनी मौतें हुई और कितने लोग दूसरे स्थान पर शिफ्ट हुए और कितने लोगों के दो-दो स्थानों पर नाम थे।
आखिर मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश गुप्ता ये क्यों नहीं बता रहे हैं कि नाम किन कारणों से काटे गए और इसके लिए कौन से दस्तावेज उनके परिजन से मांगे गए। जब तक पारदर्शिता इस मामले में नहीं दिखे तबतक चुनाव आयोग समय-सीमा को बढ़ाए क्योंकि 65 लाख मतदाता जिनके नाम मतदाता सूची से काट दिया गया है। उनको अपील के लिए बहुत कम समय दिए जा रहे हैं। चुनाव आयोग ने हर बार कहा था कि किसी का नाम नहीं कटेगा और जिनके नाम काटे जायेंगे उनको जानकारी दी जायेगी लेकिन किसी को जानकारी नहीं दी गई है। इस मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय स्वत संज्ञान लें जिससे कि मतदाताओं के अधिकार भी सुरक्षित रहें और उनके साथ अन्याय न हो। मुझे तो पहले से ही संदेह था कि बी.एल.ओ ने बिना दस्तावेज के मतदाताओं का गणना प्रपत्र अपलोड कर दिया है उसमें कितने लोग ऐसे हैं जिनका बिना दस्तावेज के अपलोड किए गए हैं। उस सूची को भी चुनाव आयोग को जारी करना चाहिए।
आगे कहा कि बिहार के आई.ए.एस व्यास जी ने अपना और अपनी पत्नी का नाम काटे जाने की बातें ट्वीट के माध्यम से बताया है। चुनाव आयोग ने अपने मन से जिसका चाहा उसका नाम काट दिया और कारण भी बताना नहीं चाहते हैं जबकि चुनाव आयोग संवैधानिक संस्था है और इसका काम है मतदाता सूची में नाम जोड़ना और जिनका नाम काटना हो उनके नोटिस भेजकर उनसे कारण पूछना, लेकिन बी.एल.ओ किसी भी मतदाता के घर नहीं गये। उन्हें पावती रसीद नहीं दिया और अपने मन से लोगों का नाम अपलोड कर दिया। वही नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने जब पत्रकारों के सामने अपना नाम चेक किया तो उसमें लिखा नो फाउंड। आगे कहा की जब चुनाव आयोग के वेबसाइट पर मेरा नाम शो नहीं कर रहा तो इसका मतलब है कि चुनाव आयोग फर्जी वेबसाइट चला रहा है। चुनाव आयोग बार-बार अपने ही गाइडलाईन और नियम को तोड़ रहा है और लोकतंत्र को खत्म करने की साजिश चल रही है।
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