Cloudburst in India: भारत में पिछले कुछ वर्षों से पहाड़ी क्षेत्रों और कुछ मैदानी इलाकों में बादल फटने (Cloudburst) की घटनाएँ तेजी से बढ़ रही हैं। उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और लेह-लद्दाख जैसे क्षेत्रों में तो यह एक आम आपदा बन चुकी है। हर बार जब बादल फटते हैं, तो कुछ ही मिनटों में इतनी बारिश होती है जितनी सामान्यत: कई दिनों में होती है। इसका परिणाम होता है – भारी जान-माल का नुकसान, भूस्खलन, बाढ़ और जनजीवन की तबाही।
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बादल फटना क्या है?
बादल फटना एक अत्यधिक वर्षा की चरम स्थिति है, जब किसी सीमित क्षेत्र में बहुत ही कम समय में 100 मिमी से अधिक बारिश हो जाती है। यह अक्सर पहाड़ी इलाकों में होता है क्योंकि वहां नमी से भरे बादल पर्वतों से टकराकर अचानक फट जाते हैं।
बादल फटने का प्रमुख कारण
1. भौगोलिक संरचना (Geographical Conditions)
पहाड़ी क्षेत्रों में नमी से भरे बादल जब ऊँचे पर्वतों से टकराते हैं, तो वे तेजी से ऊपर उठते हैं।
ठंडी हवा से मिलकर यह अचानक संघनित होकर भारी मात्रा में वर्षा के रूप में गिरते हैं।
2. जलवायु परिवर्तन (Climate Change)
बढ़ते तापमान के कारण वायुमंडल में नमी की मात्रा अधिक हो रही है।
ग्लेशियर पिघलने और अस्थिर मौसम की वजह से बादल फटने की घटनाएँ लगातार बढ़ रही हैं।
3. मौसमी हवाएँ और मानसून
मानसून के दौरान अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से आने वाली नमी युक्त हवाएँ जब हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं से टकराती हैं, तो भारी बारिश का रूप ले लेती हैं।
4. स्थानीय भौगोलिक प्रभाव
गहरी घाटियों और संकरी पहाड़ियों वाले क्षेत्रों में बादल फटने की संभावना अधिक होती है क्योंकि नमी वहीं केंद्रित हो जाती है।
बादल फटने से पहले के संभावित संकेत
हालाँकि बादल फटना अचानक और अप्रत्याशित रूप से होता है, लेकिन वैज्ञानिकों और स्थानीय लोगों ने कुछ संकेतों को नोट किया है:
अचानक बिजली चमकना और गरजना
आसमान में घने काले बादल का जमाव और तेजी से घूमना
तेज हवाओं का बहना और नमी का दबाव महसूस होना
पहाड़ी क्षेत्रों में अत्यधिक उमस और घुटन जैसा वातावरण
मौसम विभाग की रेड अलर्ट चेतावनी या क्लाउड रडार से मिली रिपोर्ट
भारत में हाल के वर्षों में बादल फटने की घटनाएँ
उत्तराखंड (धराली, उत्तरकाशी) — 5 अगस्त 2025
स्थिति: धाराली (उत्तरकाशी) में 5 अगस्त को अचानक बादल फटने से फ्लैश फ्लड आयी, जिसमें कम से कम 5 लोग मारे गए और 50 से अधिक लोग लापता हुए ।
राहत और बचाव: एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, सेना और प्रशासन ने “युद्धस्तर पर” बचाव अभियान चलाया। भारी बारिश, भूस्खलन, धुँध व बिगड़े रास्तों ने बचाव कार्यों को चुनौतीपूर्ण बना दिया ।
अधिकारिक बयान: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और गृह मंत्री अमित शाह बचाव गतिविधियों पर नजर बनाए हुए थे ।
हिमाचल प्रदेश (कांगड़ा, कुल्लू) — 25 जून 2025
स्थिति: कांगड़ा और कुल्लू जिलों में 25 जून को हुई बादल फटने की घटनाओं में 2 लोगों की मौत और दर्जनों लापता बताए गए ।
प्रभाव: सड़कें कट गईं, विद्युत आपूर्ति बाधित हुई, पेयजल स्रोत दूषित हुए; सैकड़ों लोग विस्थापित हुए ।
हिमाचल प्रदेश (खंडर आला और आसपास) — जून–जुलाई 2025
स्थिति: 25 जून को क्लाउडबर्स्ट से कूळू जिले के सैंज घाटी और आसपास स्थित कई छोटे जलविद्युत परियोजनाओं—जैसे Jiwa Small HEP, Parbati II & III HEP, Patikari HEP—को भारी क्षति पहुँची, कुछ पूरी तरह नष्ट हो गईं ।
मानव सुरक्षा: हालांकि, 12 कामगार एक बड़े हादसे से बच निकले ।
जम्मू और कश्मीर (Kishtwar, Chositi गांव) — 14 अगस्त 2025
स्थिति: Chositi गांव (Machail Mata यात्रा मार्ग पर) में 14 अगस्त को बादल फटने से फ्लैश फ्लड आया। शुरुआत में कम से कम 67 मौतें, 300 से अधिक घायल, और लगभग 200+ लोग लापता थे ।
परिदृश्य: लगभग 1,200 लोग उस समय वहीं मौजूद थे; एक सामुदायिक रसोई, सुरक्षा कैंप और कुछ भवन बह गए; कई लोग फंसे रहे ।
राहत कार्य: एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, सेना, पुलिस और NGO (Ababeel) ने बचाव अभियान चलाया; वायुसेना भी कार्य में जुटी रही ।
सरकारी प्रतिक्रिया: प्रधानमंत्री, उपराज्यपाल, मुख्यमंत्री सहित कई अधिकारियों ने सहायता का आश्वासन दिया; यात्रा स्थगित कर दी गई ।
मृत्युदर की सूचना: कुछ समाचारों में 46–80 मौतों का भी जिक्र है, हमें मानना चाहिए कि स्थिति अभी और स्पष्ट नहीं हो पाई है ।
वर्ष 2025 की प्रमुख घटनाओं का सारांश
तारीख क्षेत्र प्रमुख प्रभाव
5 अगस्त धराली, उत्तरकाशी 5+ मौतें, 50+ लापता,
बड़े पैमाने पर बचाव अभियान, 25 जून कांगड़ा, कुल्लू 2 मौतें, दर्जनों लापता, भारी भौतिक एवं पर्यावरणीय क्षति
जून–जुलाई हिमाचल (सैंज घाटी) कई जलविद्युत परियोजनाएं क्षतिग्रस्त या विध्वस्त, मजदूर बच निकले
14 अगस्त किश्तवाड़, J&K 60–80 मौतें, 200+ लापता, यात्रा स्थगित, राहत कार्य जारी
पूरे वर्ष हिमालय क्षेत्र कुल 12+ बादल फटने की घटनाएं; आवृत्ति में लगातार वृद्धि
उत्तराखंड (2021) – उत्तरकाशी और चमोली में बादल फटने से सैकड़ों लोगों की जान गई और गांव बह गए।
हिमाचल प्रदेश (2022-23) – कुल्लू और किन्नौर में बादल फटने से भूस्खलन और बाढ़ आई।
जम्मू-कश्मीर (2022) – अमरनाथ यात्रा मार्ग पर बादल फटने से कई श्रद्धालु मारे गए।
लद्दाख और लेह (2010) – एक बड़ी घटना जिसमें 200 से अधिक लोग मारे गए और हजारों बेघर हो गए।
बादल फटने से होने वाले नुकसान
1. मानव हानि – अचानक आई बाढ़ और मलबे में लोग दब जाते हैं।
2. संपत्ति का नुकसान – घर, सड़कें, पुल, खेत और गाड़ियाँ बह जाती हैं।
3. पर्यावरण पर असर – मिट्टी का कटाव, भूस्खलन और पारिस्थितिकी संतुलन बिगड़ना।
4. यात्रा और पर्यटन पर असर – पहाड़ी राज्यों में पर्यटन गतिविधियाँ ठप हो जाती हैं।
बचाव और रोकथाम के उपाय
1. वैज्ञानिक तकनीक और रडार प्रणाली
उच्च तकनीक वाले डॉप्लर रडार लगाकर समय रहते अलर्ट देना।
2. स्थानीय चेतावनी तंत्र
गांव-गांव में अलर्ट सिस्टम और सायरन की व्यवस्था करना।
3. मजबूत इंफ्रास्ट्रक्चर
पहाड़ी क्षेत्रों में सुरक्षित पुल, सड़कें और घर बनाना।
4. जनजागरूकता
लोगों को सिखाना कि बादल फटने के समय सुरक्षित स्थान पर कैसे पहुँचना है।
5. नीतिगत बदलाव
अंधाधुंध निर्माण और वनों की कटाई पर रोक लगाना।
निष्कर्ष
बादल फटना प्राकृतिक आपदा है, लेकिन इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है। जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण असंतुलन इसकी सबसे बड़ी वजह बन चुके हैं। यदि सरकार, वैज्ञानिक और आम जनता मिलकर समय रहते चेतावनी प्रणाली, सुरक्षित निर्माण और पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान दें, तो इसके खतरे को काफी हद तक घटाया जा सकता है।