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जब बिहार में महागठबंधन की सरकार बनी तो सुधाकर सिंह कृषि मंत्री बने इसके बाद उन्होंने पूर्व की सरकार में कृषि रोड मैप के जरिए खर्च किए गए लाखों करोड़ पर राशि का मूल्यांकन किया तब पता चला इसमें गड़बड़ी हुई है, बिहार के किसानों को कृषि रोडमैप की जरूरत नहीं थी, 10 सालों में 3 लाख करोड़ खर्च होने के बावजूद किसानों की आमदनी ना दुगनी हुए और न ही उपज बढ़ी ऐसे में ऐसे कृषि रोडमैप की कोई जरूरत ही नहीं है, सुधाकर सिंह ने किसानों के हित के लिए जो कदम उठाया था वह काबिले तारीफ था, किसानों के हित के लिए था और व कालाबाजारी पर कार्रवाई होता देख बड़े-बड़े उद्योगपति और पूंजीपति डर गए थे लेकिन सरकार ने तो कृषि मंत्री का इस्तीफा ले लिया।
2020 के चुनाव के दौरान या फिर तीन काले किसी कानून के विरोध में जिस तरीके से राष्ट्रीय जनता दल सड़क पर उतर कर विरोध कर रही थी और सरकार बनने के बाद मंडी कानून लागू करने की बात कह रही थी अब वह जब सत्ता में है तो एमएसपी की बात कर रही है, जो बात तीन काले कानून के सवाल पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किया करते थे उसी बात को बिहार के महागठबंधन सरकार द्वारा की जा रही है, किसान नेताओं ने कहा कि बिहार में पहली बार किसानों की से बात करने वाला मंत्री बना था लेकिन 40 से 45 दिनों के भीतर ही इस्तीफा ले लिया गया बिहार की जनता एक बार फिर सुधाकर सिंह कृषि मंत्री के रूप में देखना चाहती है अगर सरकार ने दोबारा मंत्रिमंडल में शामिल नहीं करती है तो इसका खामियाजा उसे भुगतना पड़ेगा।