Bihar: कैमूर जिले के चैनपुर प्रखंड क्षेत्र के सभी पंचायतों में कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को श्रद्धा भाव से महिलाओं के द्वारा तुलसी विवाह संपन्न किया गया। तुलसी विवाह पूजन के दौरान गन्ना सहित अन्य मौसमी फल के भोग लगाए गए और विवाह के गीत गाए गए।
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मान्यता चली आ रही है कि कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को तुलसी का विवाह भगवान विष्णु के स्वरुप शालिग्राम से हुआ था, उसी मान्यता के अनुरूप तुलसी विवाह कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को खासकर वैसी महिलाएं जिनके द्वारा छठ पूजा महापर्व को संपन्न किया जाता है उनके द्वारा संपन्न किया जाता है।
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वहीं पूजा-अर्चना और तुलसी विवाह संपन्न कर रही श्रद्धालु महिलाओं के द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक विष्णु और माता लक्ष्मी की विशेष कृपा उन लोगों को प्राप्त होती है जिनके द्वारा तुलसी विवाह करवाया जाता है। इसके साथ ही वैसी कुमारी कन्या है जिनका विवाह का योग जल्दी नहीं बन रहा है, और विवाह होने में काफी परेशानी है वैसे कन्याओं के द्वारा तुलसी विवाह करवाने पर उनके विवाह का योग बनने लगते है, और जल्द विवाह हो जाता है। सोमवार प्रखंड के सभी क्षेत्रों में श्रद्धालु महिलाओं के द्वारा विधि विधान से तुलसी विवाह संपन्न किया गया है।
प्रचलित दंतकथा
तुलसी कौन थी?
तुलसी (पौधा) पूर्व जन्म मे एक लड़की थी जिस का नाम वृंदा था, राक्षस कुल में उसका जन्म हुआ था बचपन से ही भगवान विष्णु की भक्त थी.बड़े ही प्रेम से भगवान की सेवा, पूजा किया करती थी.जब वह बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में दानव राज जलंधर से हो गया। जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था.
वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी सदा अपने पति की सेवा किया करती थी. एक बार देवताओ और दानवों में युद्ध हुआ जब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा, स्वामी आप युद्ध पर जा रहे है आप जब तक युद्ध में रहेगे में पूजा में बैठ कर आपकी जीत के लिये अनुष्ठान करुगी,और जब तक आप वापस नहीं आ जाते, मैं अपना संकल्प नही छोडूगी।
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जलंधर तो युद्ध में चले गये,और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गयी, उनके व्रत के प्रभाव से देवता भी जलंधर को ना जीत सके, सारे देवता जब हारने लगे तो विष्णु जी के पास गये, सबने भगवान से प्रार्थना की तो भगवान कहने लगे कि वृंदा मेरी परम भक्त है में उसके साथ छल नहीं कर सकता।
फिर देवता बोले भगवान दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है अब आप ही हमारी मदद कर सकते है, भगवान ने जलंधर का ही रूप रखा और वृंदा के महल में पँहुच गये जैसे ही वृंदा ने अपने पति को देखा, वे तुरंत पूजा मे से उठ गई और उनके चरणों को छू लिए, जैसे ही उनका संकल्प टूटा, युद्ध में देवताओ ने जलंधर को मार दिया और उसका सिर काट कर अलग कर दिया,उनका सिर वृंदा के महल में गिरा जब वृंदा ने देखा कि मेरे पति का सिर तो कटा पडा है तो फिर ये जो मेरे सामने खड़े है ये कौन है।
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उन्होंने पूँछा आप कौन हो जिसका स्पर्श मैने किया, तब भगवान अपने रूप में आ गये पर वे कुछ ना बोल सके,वृंदा सारी बात समझ गई, उन्होंने भगवान को श्राप दे दिया आप पत्थर के हो जाओ, और भगवान तुंरत पत्थर के हो गये, सभी देवता हाहाकार करने लगे लक्ष्मी जी रोने लगे और प्रार्थना करने लगे तब वृंदा जी ने भगवान को वापस वैसा ही कर दिया और अपने पति का सिर लेकर वे सती हो गयी।
उनकी राख से एक पौधा निकला तब भगवान विष्णु जी ने कहा आज से इनका नाम तुलसी है, और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जायेगा और में बिना तुलसी जी के भोग
स्वीकार नहीं करुगा, तब से तुलसी जी कि पूजा सभी करने लगे, और तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ कार्तिक मास में, किया जाता है. देव-उठावनी एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है!