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शनिवार को सुधाकर सिंह द्वारा लिखे गए पत्र में कहा गया कि राज्य सरकार के मुखिया का दायित्व होता है कि वह बुनियादी स्तर पर ईमानदारी के साथ कर्तव्य करें, पहले तो शक होता था कि आपमें इसकी कमी हैं, मगर अब आपके द्वारा कही गई मनगढ़ंत बातों को सुनकर यही लगता है कि आपके राजनीतिक जीवन में कर्तव्य, निष्ठा और ईमानदारी का कोई अस्तित्व ही नहीं है, कोई नीतिगत मुद्दे पर तार्किक सवाल कर दें तो आपका एक हीं घिसा-पिटा जवाब होता है कि सवाल पूछने वाले को कुछ नहीं पता है खैर आपके जैसे प्रकांड विद्वान के सामने हमारी क्या बिसात!’ उन्होंने कहा कि ‘हमें पता है कि आपकी जानकारी, आंकड़ों और जमीनी हकीकत से कोई वास्ता नहीं है।
आपकी एक बात से सहमत हूं कि जनता मालिक है, आगामी चुनावों में अपने पसंद का कोई भी क्षेत्र चुन लीजिएगा, जनता इसका उदाहरण के साथ पुष्टि भी कर देगी कि बिहार के लोगों का आपसे भरोसा उठ चुका है और जनता वाकई मालिक है, आगामी बजट सत्र में एक बार फिर से बिहार में कृषि मंडी कानून के लिए निजी विधेयक पेश करूंगा, इस बार अगले दरवाजे से आकर बहस के लिए तैयार रहिएगा, बिहार के किसानों की आमदनी की हकीकत
दूसरे एवं तीसरे कृषि रोड मैप में बिहार के किसानों की आमदनी बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया था, 24 मार्च 2022 को संसदीय समिति द्वारा संसद में पेश किए गए एक रिपोर्ट के अनुसार सबसे ज्यादा कमाई मेघालय के किसानों की है, यहां के किसान हर महीने औसतन 29,348 रुपए कमाते हैं, वहीं पंजाब के किसान हर महीने 26,701 रुपए कमाते हैं, जब की बिहार में किसान हर महीने औसतन 7,542 रुपए कमाता है।
बिहार सरकार धान पैक्स के माध्यम से खरीद करती है, धान की कटाई अक्टूबर के महीने में होती है पर पैक्स धान खरीद दिसंबर में करती है, पैक्स द्वारा सीमित धान खरीदी और किसानों से खरीदे गए धान की भुगतान में देरी की वजह से किसान अपने धान बिचौलियों को समर्थन मूल्य से 700-800 रुपए प्रति क्विंटल कम में बेचने को मजबूर होते हैं, पंजाब में धान की बिक्री औसत 2300 रुपए प्रति क्विंटल है, वहीं बिहार में धान की बिक्री मूल्य औसत 1600 रुपए प्रति क्विंटल है, बिहार राज्य के जीडीपी में कृषि का योगदान लगभग 18-19 फीसदी है, कृषि का अपना ग्रोथ रेट लगातार कम हुआ है, साल 2005-2010 के बीच ये ग्रोथ रेट 5.4 फीसदी था 2010-14 के बीच 3.7 फीसदी हुआ और अब 1-2 फीसदी के बीच है।