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IPC CRPC आदि में हुआ संशोधन राजनीति लाभ उठाकर नहीं बच सकेंगे अपराधी

Bihar: मानसून सत्र के आखिरी दिन यानि 11 अगस्त को गृह मंत्री अमित शाह ने कानून व्यवस्था में बदलाव के लिए 3 नए बिल पेश किए, वही शनिवार 12 अगस्त को कपिल सिब्बल और तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन ने आपत्ति जताई, सिब्बल ने कहा कि इन बिलों के पास होने के बाद केंद्र सरकार राजनीतिक फायदों के लिए पुलिस का इस्तेमाल करेगी वहीं एमके स्टालिन ने कहा कि तीनों बिल हिंदी में है, इसके जरिए जबरन हिंदी थोपी जा रही है।

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ये तीन बिल भारतीय न्याय संहिता 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 और भारतीय साक्ष्य बिल 2023 हैं, वरिष्ठ वकील और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने ट्वीट किया- भारतीय न्याय संहिता (BNS) 15 से 60 या 90 दिनों की हिरासत की इजाजत देता है, देश की सुरक्षा को खतरे में डालने वाले लोगों पर कार्रवाई के लिए नए आरोप तय किए जाएंगे इसका एक ही एजेंडा है विरोधियों को शांत करना।

DMK सांसद विल्सन ने कहा कि तीनों बिलों के नाम बदलकर अंग्रेजी में करने चाहिए, हिंदी को अनिवार्य करना असंवैधानिक है भारत में कई भाषाएं बोली जाती हैं लेकिन अंग्रेजी आम भाषा है वहीं तीनों बिल हिंदी में हैं, इसलिए लोग समझ नहीं पा रहे-

संशोधित किए गए तीन नए बिल इस प्रकार हैं।

(1) राजद्रोह नहीं अब देशद्रोह:- ब्रिटिश काल के शब्द राजद्रोह को हटाकर देशद्रोह शब्द आएगा, प्रावधान और कड़े अब धारा 150 के तहत राष्ट्र के खिलाफ कोई भी कृत्य, चाहे बोला हो या लिखा हो या संकेत या तस्वीर या इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से किया हो, तो 7 साल से उम्रकैद तक सजा संभव होगी, देश की एकता एवं संप्रभुता को खतरा पहुंचाना अपराध होगा, आतंकवाद शब्द भी परिभाषित, अभी IPC की धारा 124ए में राजद्रोह में 3 साल से उम्रकैद तक होती है।
(2) सामुदायिक सजा:- पहली बार छोटे-मोटे अपराधों नशे में हंगामा, 5 हजार से कम की चोरी के लिए 24 घंटे की सजा या एक हजार रु. जुर्माना या सामुदायिक सेवा करने की सजा हो सकती है अभी ऐसे अपराधों पर जेल भेजा जाता है अमेरिका-UK में ऐसा कानून है।
(3) मॉब लिन्चिंग:- मौत की सजा का प्रावधान 5 या अधिक लोग जाति, नस्ल या भाषा आधार पर हत्या करते हैं तो न्यूनतम 7 साल या फांसी की सजा होगी अभी स्पष्ट कानून नहीं है धारा 302, 147-148 में कार्रवाई होती है।

पुलिस को 90 दिन में आरोप पत्र दाखिल करना होगा कोर्ट इसे 90 दिन बढ़ा सकेगा लेकिन अधिकतम 180 दिन में जांच पूरी कर ट्रायल के लिए भेजनी होगी ट्रायल के बाद कोर्ट को 30 दिन में फैसला देना होगा फैसला एक सप्ताह के भीतर ऑनलाइन अपलोड करना होगा 3 साल से कम सजा वाले मामलों में संक्षिप्त सुनवाई पर्याप्त होगी, इससे सेशन कोर्ट में 40% मुकदमे कम हो जाएंगे सजा की दर 90% तक ले जाने का लक्ष्य है।

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