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हालांकि रामगढ़ में बारहो महीना राजनीति होती है। चुनाव हो या ना हो क्षेत्र में नेताओं की चहलकदमी हमेशा रहती है। यही कारण है कि रामगढ़ को हार्ट पाल्टिक प्लेश कहा जाता है। जहां लगातार चुनाव लड़े जाते हैं। दो परस्पर विरोधी धूरी के बीच यहां का चुनाव होता रहा है। मगर होने वाले इस उप चुनाव का कार्यकाल एक साल का ही होगा। अल्प अवधि के लिए यह चुनाव भी कई मायने में जाना जाएगा। भाजपा राजद व बसपा के लिए फिर एक बार इस रिक्त हुई विधानसभा की सीट पर चुनाव में अग्नि परीक्षा होगी।
चुनाव का दिलचस्प पहलू यह है कि अब तक के रिक्त सीट पर हुए उप चुनाव में संबंधित दल के प्रत्याशी को ही सफ़लता हासिल हुई है। जब विधायक रहते हुए जगदानंद सिंह संसद का चुनाव 2009 में जीते थे। तब इस रिक्त सीट पर राजद के जिलाध्यक्ष रहे अंबिका यादव लड़े थे। और वह उप चुनाव जीत गए थे। अब देखना यह है कि पुत्र की रिक्त हुई सीट पर किसे उम्मीदवार राजद बनाएगा। अभी से ही कई नाम हवा में तैरने लगे हैं। वहीं भाजपा भी फिर से तैयारी में लग गई है। राजनीति संभावनाओं का खेल है। जो कभी भी बना बिगाड़ सकती है। उस खेल का खिलाड़ी वही माहिर हो सकता है जिसको जनता का आशीर्वाद प्राप्त होगा। बहरहाल इस उपचुनाव में भी प्रत्याशियों के पसीने छूटना तय माना जा रहा है।