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सुंदर पत्नी की बेवफाई से राजा भर्तृहरि बने सन्यासी या कुछ और, पढ़िए गुफा का रहस्य

The infidelity of the beautiful wife made King Bhartrihari a hermit or something, know the secret of this cave

विश्व प्रसिद्ध राजा भर्तृहरि की गुफा
विश्व प्रसिद्ध राजा भर्तृहरि की गुफा

Desk: मध्यप्रदेश के इंदौर स्थित बारसिंहस्थ में 25 सौ वर्ष पुरानी विश्व प्रसिद्ध राजा भर्तृहरि की गुफा अनेकों रहस्य से भरी हुई है, इसके साथ ही राजा भर्तृहरि के सन्यास लेने को लेकर भी कई कहानियां प्रचलित है, यहां एक गुफा राजा भर्तृहरि की तो दूसरी गुफा उनके भतीजे राजा गोपीचंद की तपस्थली बताई जाती है। आइए इस गुफा के विषय में कुछ विशेष जानते हैं, साथ ही राजा भर्तृहरि किन कारणों से तपस्वी बन गए, जिसके विषय में कई तरह की कहानियां प्रचलित है उनमें से जो सबसे प्रचलित है उन कहानियों के विषय में जानते हैं।

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यह गुफा भर्तृहरि की तपस्या स्थली है, चार धाम को जाता है यह गुफा

जानकारों के मुताबिक यह गुफा भर्तृहरि की तपस्या स्थली है, इस गुफा के पास ही शिप्रा नदी बह रही है, गुफा के अंदर जाने का रास्ता काफी छोटा है, एक गुफा और है जो कि पहली गुफा से छोटी है, यह गोपीचंद की गुफा है जो भर्तृहरि का भतीजा था, गुफा के अंत में राजा भर्तृहरि की प्रतिमा है और उस प्रतिमा के पास ही एक और गुफा का रास्ता है, विद्वान एवं जानकारों के मुताबिक गुफा के विषय में ऐसा माना जाता है कि यह चारों धाम का रास्ता है, गुफा में भर्तृहरि की प्रतिमा के सामने एक धुनी भी है, जिसकी राख हमेशा गर्म रहती है।

राजा भर्तृहरि के तपस्वी बनने की प्रथम कहानी

राजा भर्तृहरि के तपस्वी बनने की प्रथम कहानी यह प्रचलित है कि एक बार राजा भर्तृहरि अपनी पत्नी पिंगला के साथ जंगल में शिकार को निकले थे, काफी समय भटकने के बाद भी जब उन्हें कोई शिकार नहीं मिला तो निराश होकर वापस अपनी पत्नी के साथ घर लौट रहे थे, तभी रास्ते में उन्हें हिरणों का एक काफी बड़ा झुंड दिखाई दिया, जिसके आगे एक मृग चल रहा था भर्तृहरि उस पर प्रहार करना चाहते थे तभी उनकी पत्नी पिंगला ने उन्हें रोकते हुए अनुरोध किया कि महाराज यह मृगराज 700 हिरणीयों का पति है और उसका पालन करता है इसलिए आप उसका शिकार ना करें, मगर राजा भर्तृहरि ने पत्नी की बात को नहीं मानते हुए हिरण पर बाण चला दिया।

प्राण छोड़ते हिरण की बात सुन राजा हो उठे द्रवित

बाण लगने से मरणासन्न होकर भूमि पर गिर पड़े प्राण छोड़ते हिरण ने राजा भर्तृहरि से कहा कि तुमने यह ठीक नहीं किया है, अब मैं जो बताता हूं वह सुनो और उसका पालन करो, जब मेरी मृत्यु हो के बाद मेरे शरीर को श्रृंगी बाबा को, मेरे नेत्र चंचल नारी को, मेरी त्वचा साधु-संतों को एवं मेरे पैर भागने वाले चोरों को और मेरे शरीर की मिट्टी पापी राजा को दे देना, मरणासन्न हिरण की इन करुणामई बातों को सुनकर राजा भर्तृहरि का हृदय काफी द्रवित हो उठा और वह गलानी और पश्चाताप में डूब गए, जिसके बाद उन्होंने हिरण का शव उठाकर घोड़े पर लादा और चल दिए रास्ते में उनकी मुलाकात बाबा गोरखनाथ से हुई जिनके पास राजा भर्तृहरि ने इस घटना की जानकारी देते हुए बाबा गोरखनाथ से हिरण को जीवन दान देने की गुहार लगाई राजा की प्रार्थना पर बाबा गोरखनाथ ने कहा कि एक शर्त पर में हिरण को जीवनदान दे सकता हूं, अगर तुम मेरा शिष्य बन जाओ राजा ने बाबा गोरखनाथ की शर्तों को मान लिया और उस हिरण को जीवनदान दिलवाया, जिसके बाद राजा भर्तृहरि तपस्वी बन गए।

राजा के तपस्वी बनने की सबसे प्रचलित कहानी

यह गुफा राजा भृर्तहरि की तपस्थली कैसे बनी इसके पीछे दूसरी चर्चित कहानी है, उज्जैन के प्रसिद्ध राजा विक्रमादित्य के भाई का नाम राजा भृर्तहरि था, भृर्तहरि बहुत ज्ञानी थे उनकी दो पत्नियां होने के बावजूद भी वह पिंगला नामक अति सुंदर राजकुमारी पर मोहित हो गए और उन्होंने तीसरा विवाह कर उन्हें तीसरी पत्नी बना लिया, भृर्तहरि पिंगला के इशारे पर काम करने लगे, राजा भृर्तहरि की इस बात का फायदा उठाकर पिंगला व्यभिचारिणी हो गई।

राजा से बेवफाई कर पत्नी करने लगी कोतवाल से प्रेम

वह कोतवाल से प्रेम करने लगी, जब यह बात छोटे भाई विक्रमादित्य को पता चली तो उन्होंने यह बात अपने बड़े भाई को बताएं लेकिन राजा भृर्तहरि ने विक्रमादित्य को चरित्रहीन मानकर उन्हें राज्य से निकल दिया जिसके कुछ समय बाद बाबा गोरखनाथ ने राजा को एक फल वरदान स्वरूप दिया जिसके खाने से राजा अमर हो जाते, जिस फल को राजा ने पिंगला को दे दिया ताकि वह अमर हो जाए लेकिन पिंगला ने यह फल खाने के बजाय अपने प्रेमी कोतवाल को दे दिया और प्रेमी ने वैश्या को दे दिया।

अमरफल घूम कर वापस राजा के पास पहुंच गया और खुल गई पूरी पोल

वैश्या ने फल यह सोचकर नहीं खाया की यह फल खाने से जिंदगी भर पाप कर्म में डूबी रहेगी इस कारण उसने यह फल राजा को भेंट कर दिया, राजा भरथरी ने वैश्य से पूछा की यह फिर उसे कहां से प्राप्त हुआ तो वैश्य ने बताया की यह फल उसे कोतवाल ने दिया है जब राजा ने कोतवाल से पूछा की उसने यह फल कहां से प्राप्त किया तो उसने बताया की उसे फल रानी ने दिया है, जिसके बाद राजा समझ गए की पिंगला उन्हें धोखा दे रही है।

यही से राजा भृर्तहरि  के मन में वैराग्य जाग उठा और अपने संपूर्ण राज्य को छोटे भाई विक्रमादित्य को सौंप कर उज्जैन की एक गुफा में आ गए जहां उन्होंने 12 वर्षों तक तपस्या की, आज इसी गुफा को राजा भर्तृहरि गुफा के नाम से जाना जाता है।

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