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बताया गया है कि सासाराम में सम्राट अशोक के शिलालेखों का लंबे समय तक अतिक्रमण किया गया था, साइट की चाबी जो एक संरक्षित स्मारक है, जिला प्रशासन के अधिकारियों के हस्तक्षेप के बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधिकारियों को सौंप दी गई, बिहार में अपनी तरह का एकमात्र शिलालेख जो दो दशक से ज्यादा समय तक अतिक्रमणकारियों के हाथ में था यहां तक कि पुरातत्व विभाग के द्वारा संरक्षित स्थल पर लगाए गए बोर्ड को भी अतिक्रमणकारियों ने उखाड़ फेंका और शिलालेख पर चुना पोतकर नष्ट करने की कोशिश की गई इस ऐतिहासिक शिलालेख के आगे गेट लगा दिया गया था पुरातत्व के द्वारा बार-बार मांगने पर भी उसकी चाबी नहीं दी जा रही थी।
इस मामले में अवैध कब्जे को लेकर दो दशक तक खबरें मिलती रही लेकिन बीते दिनों एक बार फिर मुद्दा गरमाया और इसके बाद सियासत तेज हो गई नेता प्रतिपक्ष सम्राट चौधरी ने शासन पहुंचकर धरना प्रदर्शन पर डीएम को ज्ञापन सौंपा जिसके बाद जिला प्रशासन ने भी दबाव बनाए तब जाकर पता तो तब जाकर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधिकारी को 23 साल बाद चाबी मिल पाई है, दरअसल सासाराम नगर के चंदन पहाड़ी पर यह शिलालेख स्थित है जानकारों की मानें तो कलिंग युद्ध के बाद जब सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म को अपना लिया था और देश और दुनिया में बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार करने लगे इसी दौरान सारनाथ की ओर जाने के क्रम में सम्राट अशोक चंदन पहाड़ी के पास रुके थे इतिहासकारों का मानना है कि धर्म प्रचार के 256 दिन पूरे होने पर चंदन पहाड़ी पर लिखा गया था इस तरह के लघु शिलालेख सासाराम के अलावा उत्तर प्रदेश एवं कैमूर जिला में भी है, बौद्ध धर्म के प्रचार से संबंधित शिलालेख अंकित किए गए हैं।