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नदी में प्रवेश करने के बाद माता का नाम लेते हुए भगत ने दर्जनों सांप निकालें, भगत ने जितनी बार नदी में डुबकी लगाई उतनी बार दो-चार सांप लेकर बाहर निकला और श्रद्धालुओं को दिए, इसके बाद फिर से वो डुबकी लगाने लगे, घंटों के करतब के बाद सारे सांप लेकर भगत और श्रद्धालु मंदिर की ओर लौट गए और उनको वापस छोड़ दिया, दरअसल सिंघिया घाट के पास बूढ़ी गंडक नदी किनारे वर्षों सांपों का मेला लगता है, जहां बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ जुटती है, इस मेले का दूसरे क्षेत्र के लोग भी इंतजार करते हैं कहा जाता है कि इस इलाके लोग सांप को नहीं मारते इतनी संख्या में सांप लेकर चलने के बाद भी आज तक इस मेले में किसी को भी सांप ने नहीं डंसा।
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एक महीने पहले से ही इसकी तैयारी शुरू हो जाती है, स्थानीय लोग सांप पकड़कर घरों में रखना शुरू कर देते है नागपंचमी के दिन वो सांप लेकर झुंड बनाकर दूसरे पहर नदी के घाट पर जाते हैं, नागपंचमी से एक दिन पहले रात भर जागरण होता है, लोग सांप, नाग लेकर जुटते है और रात भर की पूजा अर्चना के बाद लोग जुलूस निकालते हुए नदी जाते, स्नान करके सांप या नाग को दूध, लावा खिलाया जाता है और फिर सांप को जंगल में छोड़ देते हैं।
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