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वीआईपी को लगा झटका तीन विधायकों ने भाजपा के पक्ष में सौंपा समर्थन पत्र

Bihar: बिहार में एनडीए सरकार में शामिल वीआईपी पार्टी के तीनों विधायक राजू सिंह, स्वर्ण सिंह और मिश्री लाल यादव ने पार्टी छोड़ दी है, बुधवार को बिहार की राजनीति में बड़ा उलटफेर देखने को मिला, बुधवार की शाम विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा को बीजेपी के पक्ष में तीनो विधायकों अपना समर्थन पत्र सौंपा इसके साथ ही अब बिहार विधानसभा में वीआईपी का बीजेपी में विलय हो गया, अब तक वीआईपी सुप्रीमो अपने दल के विधायकों के समर्थन को लेकर एनडीए की सरकार को धमकी देते थे कि वह समर्थन वापस ले लेंगे तो सरकार गिर जाएगी लेकिन तीनों विधायकों के पार्टी छोड़ने के बाद वह भौचक्के रह गए इसके बाद वह कुछ नहीं कर सकेंगे।

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स्वर्णा सिंह

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बिहार में सरकार बनाने के लिए 122 विधायकों का समर्थन जरूरी है एनडीए के पास 127 विधायकों का समर्थन है इनके पास अगर हम के जीतन राम मांझी और एक निर्दलीय विधायक समर्थन वापस ले लेते हैं तो भी एनडीए सरकार पूरी तरह से सुरक्षित रहेगी, वीआईपी में टूट के बाद बीजेपी के पास अब 77 विधायक हो गए हैं पहले इनके पास 74 विधायक थे वहीं आरजेडी अब राज्य में दूसरे स्थान पर आ गई है इनके पास फिलहाल 75 विधायक हैं।‌

मिश्री लाल यादव

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दरअसल मुकेश सहनी ने एक दिन पहले ही सोशल मीडिया पर लाइव आकर इसका अंदेशा जताया था कि एनडीए सरकार से उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है, उन्होंने कहा था कि बीजेपी के एक सांसद ने यूपी चुनाव में बीजेपी खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए प्राश्चित करने की बात कही थी ऐसा नहीं करने पर उन्होंने खामियाजा भुगतने के लिए कहा था, तीनों विधायकों के बीजेपी में आने के बाद बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने कहा कि तीनों विधायक हमेशा से बीजेपी के थे, 2020 में बीजेपी की तरफ से इन्हें चुनाव लड़ने की पूरी तैयारी हो गई थी लिस्ट में इनका नाम भी तय हो गया था अगर राजद में सहनी की पीठ में खंजर नहीं घोपा होता तो यह बीजेपी के ही उम्मीदवार होते आज सहनी ने अपनी ताबूत में आखिरी कील मार ली।

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भाजपा ने अपने कोटे में आई 121 सीट में से 11 से वीआईपी को दी थी यह भाजपा का अति पिछड़ा कार्ड था 11 में से 4 सीट पर वीआईपी को जीत मिली थी इसी के साथ सहनी की ताकत राजनीति में बढ़ गई उनको वह विभाग दिया गया जिस मछुआरे की लड़ाई लड़ते रहे और आरक्षण की मांग करते रहे इसके साथ ही वह पहली बार मंत्री बने, अब बदलती राजनीति में 21 जुलाई के बाद सहनी का मंत्री बने रहना भी मुश्किल हो सकता है, भाजपा उन्हें हटाकर अति पिछड़ा वोट बैंक को आहत नहीं करना चाहती, सहनी इससे पहले क्या कदम उठाते हैं, यह उनके राजनीतिक विवेक पर निर्भर करेगा, वे 21 जुलाई के पहले मंत्री पद छोड़ देंगे या फिर टर्म खत्म होने का इंतजार कर सकते हैं।

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