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राजद की छवि सुधारने में जुटे तेजस्वी यादव, एमवाई की जगह ए टू जेड की पॉलिटिक्स

Bihar: आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव के छोटे बेटे तेजस्वी यादव अब राजनीति की नई इबारत लिखने में जुट गए हैं वे अब सामाजिक न्याय की राजनीति की जगह सबको साथ लेकर चलने की सियासत की राह पर आगे बढ़ रहे हैं, वे अपने पिता की गलतियों को सुधारने में लगे हुए हैं, परशुराम जयंती के मौके पर भूमिहार-ब्राह्मण एकता मंच की ओर से आयोजित कार्यक्रम में यह स्पष्ट रूप से दिखाई भी दिया और लगभग 22 मिनट के अपने भाषण में बार-बार साथ आने, विश्वास करने और गलतियों को सुधारने का मौका देने की बात करते रहे, तेजस्वी यादव किन गलतियों को सुधारने की बात कर रहे हैं यह हम आपको बताने की कोशिश कर रहे हैं।

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तेजस्वी यादव
तेजस्वी यादव

पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स की माने तो तेजस्वी अब इस बात को समझ गए हैं कि ‘एमवाई’ पार्टी की छाप से तेजस्वी आगे नहीं बढ़ सकते इससे उन्हें बाहर निकलना होगा, यही कारण है कि वे अब अपनी पार्टी को सभी की पार्टी बनाने में जुटे हुए हैं, वह ‘ए टू जेड’ का नारा दे रहे हैं, तेजस्वी यादव के बयान के मायने बिहार के जातीय समीकरण से भी समझा जा सकता है बिहार में मुस्लिम वोटर करीब 17% है और यादव 13% कुल मिलाकर यानि 30 फ़ीसदी होता है।

1995 के विधानसभा चुनाव तक बिहार के राजपूत और भूमिहार वोटरों की अच्छी खासी आबादी लालू प्रसाद यादव के साथ थी, रघुवंश प्रसाद, प्रभुनाथ सिंह, जगदानंद सिंह सरीखे नेताओं की पार्टी में अच्छी पूछ रही लेकिन से 1995 के चुनाव में सरकार बनने के बाद लालू यादव ने फॉरवर्ड जाति के वोटरों से किनारा करना शुरू कर दिया उनका फोकस मुस्लिम, यादव और दलित पर रह गया, उन्हें लगा कि मुस्लिम, यादव, दलित का कॉन्बिनेशन उन्हें सत्ता में बनाए रखेगा लेकिन उनकी इस सोच को बिहार की जनता ने गलत साबित कर दिया।

2019 के चुनाव में लालू फैमिली ने स्वर्ण को मिले 10% आरक्षण का विरोध किया जिसका खामियाजा यह हुआ कि रघुवंश प्रसाद, जगदानंद सिंह जैसे सरीखे की नेताओं की भी हार हुई, इस कारण स्वर्ण उन पर भरोसा करने से बच रहे हैं, वही 1989 के आखिरी से लेकर 2005 तक बिहार में लालू यादव के राष्ट्रीय जनता दल का शासन है इस दौरान बिहार की सियासत में राजनीति और अपराध में तालमेल देखा गया, पार्टी पर से जंगलराज का दाग नहीं मिट रहा, अपराधियों के राजनीतिक संरक्षण, उनके राजनीति में प्रवेश, रंगदारी और किडनैपिंग के मामलों का पूरे बिहार में वर्चस्व कायम था।

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