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मानव रक्त से होती है अभैदे कोट के देवी की पूजा जुटती है लाखों की भीड़

Bihar: कैमूर जिले के रामगढ़ प्रखंड के अभैदे कोट पर एक ऐसे देवी जहां पूजा की शुरुआत मानव रक्त से की जाती है, यहां शारदीय और बसंती के नवरात्र में भक्तों की काफी भीड़ देखने को मिलती है माघ मास के गुप्त नवरात्र में भी यह भक्तों की आवाजाही रहती है भक्त अपनी दाहिनी भुजा काट कर चढ़ाते हैं मां दुर्गा के मंदिर परिसर में रामनवमी के दिन श्रद्धा का यह भावपूर्ण सच दर्शनीय है, यह दशकों से नहीं बल्कि कई सौ वर्षों से ऐसी परंपरा का निर्वहन होता है, गांव में 500 वर्षों से महादेवी को मानव रक्त का अर्ध्य देने की परम्परा चली आ रही इस परंपरा के पीछे शौर्य व पराक्रम की कहानी है, जो सनातन संस्कृति के उदात्त स्वरूप में बसी वीरगाथा की श्रेष्ठ प्रतिबिंब है।

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जनश्रुतियों के अनुसार यह कथा शरीर में ऊर्जा का संचार करती है, यह गाथा वीरकाल के उस दौर की है जिसमें आततायियों की तूती बोल रही थी, तब इसी अभैदे गांव के घानाराय की बहादुरी के चर्चा बेमिसाल रहा, 17 वीं सदी में कमाल खां नामक आक्रांता ने अभैदे के बगल में खोरहरा के पास अपनी सेना के साथ डेरा डाल दिया था, तब उसकी योजना अभैदे गांव पर आक्रमण कर घानाराय का मानमर्दन कर सिरकलम करने की थी, उसके गुप्तचरों ने घानाराय के बीमार होने की सूचना दी थी, लिहाजा कमाल खां अपने जीत के प्रति आश्वस्त हो गया और उसने अपने दूत को घनाराय के पास भेजे और षडयंत्र के तहत दूत ने बाएं हाथ से सलामी ठोंक घानाराय को अधीनता स्वीकार करने का अपने स्वामी का फरमान सुनाया। ‌

बताया जाता है कि तब इस देवी मां के अनन्य उपासक घानाराय तिलमिलाकर उठे, वे बीमार अवस्था में ही देवी मां के पास पंहुचे और आराधना की और शत्रु के संहार के लिए अपनी तलवार देवी मां के चरणों में समर्पित कर दिया, ऐसा कहते हैं कि देवी ने प्रकट होकर घानाराय को तलवार अपने हाथों से सौंपा, जिसके बाद गांव के पूरब कमाल खां और उनकी सेना का संहार करते हुए उन्होंने जीत हासिल की थी, युद्ध जीतने के बाद मां के चरणों में वह जयकारा लगाते हुए गिर पड़े और विजय की खुशी में उन्होंने अपने दाएं भुजा को चीरकर रक्त चढ़ा कर आशीर्वाद लिया था तब से उनके वंशज इस परंपरा का निर्वाह करते आ रहे हैं।

खास बात यह है कि गांव के सभी वृद्ध बुजुर्ग और बच्चे दोनों नवरात्र में अपनी दाहिनी भुजा काट कर रक्त अर्पित करते हैं गांव का नाई उस्तुरे से दाहिनी भुजा में चीरा लगाता है जिसे श्रद्धालु ‘पाछ मारना’ कहते हैं, इस चीरा से न तो दर्द होता है न ही जख्म, रामनवमी के दिन इस विहंगम दृश्य को देखने के लिए यूपी- बिहार के हजारों श्रद्धालु आते हैं।

मां के धाम पहुंचने के लिए रामगढ़ प्रखंड मुख्यालय से देश 100 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में स्थित धाम में खोरहरा-भरिगांवा रोड या रामगढ़ से विसूनपुरा गांव होते पंहुचा जा सकता, भरिगांवा गांव वाले रास्ते का पक्कीकरण हो गया है, जबकि बिशनपुरा गांव में जाने वाले रास्ते को लेकर कुछ असामाजिक तत्वों के द्वारा अवरुद्ध कर दिया गया है, जिस कारण श्रद्धालुओं को असुविधा होती है, 9 दिनों तक नवरात्र में यहाँ भक्त अपनी पूजा करने पहुंचते हैं ग्रामीणों के अनुसार वासंतिक व शारदीय नवरात्रि के अलावा माघ मास की गुप्त नवरात्र में भी पूजा पद्धति का निर्वहन होता है और यहां आने वाले निराश नहीं लौटते।

 

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