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यह कहानी भगवान सूर्य की पूजा उपासना की है ऐसा बताया जाता है कि पुंडरीक ऋषि के द्वारा प्राचीन तालाब के पूर्व दिशा में सूर्य पीठ बनाकर भगवान सूर्य की पूजा करते थे तब से ही भगवान सूर्य की पूजा उपासना की जाती है और युगांतर के बाद सन 1986 में यहां जनसहयोग से घोड़ों पर सवार भगवान सूर्य की प्रतिमा स्थापित कर मंदिर का निर्माण कराया गया है छठ पर्व के अवसर पर दूर-दूर से लोग भगवान सूर्य के दर्शन करने पहुंचते है।
छठ पर्व को लेकर मंदिर को भी सजाया जा रहा है, मंदिर के अंदर और बाहर काम चल रहा है जहां तालाब के पूर्व में सूर्य मंदिर स्थित है वहीं पश्चिम दिशा में शिव मंदिर और दक्षिण में मां काली के मंदिर में पौराणिक कथाओं के अनुसार यहां स्नान करने के बाद सूर्य की उपासना करने की परंपरा चली आ रही है यहां सूर्य मंदिर की जगह पर हर वर्ष छठ में भव्य रूप से पूजा अर्चना की जाती है।
मंदिर के पुजारी उमेशानंद जी महाराज बताते हैं कि इस तालाब में स्नान कर सूर्य देवता की उपासना करने वालों की हर मनोकामना पूर्ण होती है, इस क्षेत्र में ही पुण्डरीक ऋषि का आश्रम हुआ करता था जहां ऋषि इसी तालाब में स्नान करते थे और भगवान सूर्य को प्रातः जल का अर्घ्य दिया करते थे पुण्डरीक ऋषि ने यहां सूर्य भगवान की पिंड स्थापित किया था यहां प्राचीन तालाब है इसमें स्नान कर भगवान सूर्य को अर्घ्य देने पर उनकी हर मुराद पूरी होती है चार दिनों के लोक आस्था के महापर्व को लेकर यहां एक अलग ही रौनक रहती और यहां पूजा अर्चना के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से पहुंचते हैं।