Bihar: कैमूर जिले के चैनपुर प्रखंड क्षेत्र में चैत नवरात्रि के दौरान मां चंडेश्वरी धाम में पूजा अर्चना का विशेष महत्व माना गया है, दूर-दराज से यहां श्रद्धालु पहुंचते हैं और मां की पूजा अर्चना करते हैं लोगों के बीच मान्यता है कि मां चंडेश्वरी के दरबार से कभी भी कोई खाली हाथ नहीं लौटता है।
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चैनपुर के मदुरना में स्थित मां चंडेश्वरी के मंदिर के विषय में शायद ही लोग जानते होंगे, मगर इस मंदिर की महानता के विषय में जिन लोगों के पास भी जानकारी है वह प्रत्येक वर्ष चैत्र नवरात्रि में आकर दर्शन पूजन करना नहीं भूलते, ज्यादातर श्रद्धालुओं को यही पता है कि भगवानपुर प्रखंड के पवरा पहाड़ी पर स्थित मां मुंडेश्वरी धाम में ही रक्त विहिन बली की परंपरा है, श्रद्धालुओं को जानकार यह आश्चर्य होगा कि चैनपुर प्रखंड क्षेत्र के ग्राम मदुरना में स्थित मां चंडेश्वरी मंदिर में भी रक्त विहीन बाली की प्रथा लंबे समय से चली आ रही है।
मां चंडेश्वरी के चरणों में रक्त विहीन बलि चढ़ाई जाती है, पुजारी के द्वारा मां की आराधना करते हुए मां के चरणों में बकरे को रख दिया जाता है, और मां की आराधना की जाती है उस दौरान कुछ समय के लिए बकरा बिल्कुल ही मृत अवस्था में पहुंच जाता है, बकरा बिल्कुल ही निर्जीव पड़ा रहता है पूजा अर्चना के बाद जब मंदिर के पुजारी द्वारा अभिमंत्रित अक्षत बकरे के ऊपर फेक जाते हैं तो बकरा खुद व खुद पूर्व की भांति जीवित अवस्था में आ जाता है।
हालांकि इस मंदिर में चैत नवरात्रि के प्रथम दिन से ही मां को लोगों के द्वारा बकरे की रक्त विहीन बली चढानी प्रारंभ कर दी जाती है, रक्त विहीन बाली चलाने वालों की संख्या अष्टमी को सबसे अधिक देखा जाता है, इस दिन श्रद्धालुओं की अधिक भीड़ रहती है।
लोगों के बीच में कथा प्रचलित है कि चंड़ और मुंड़ दो राक्षसों का वध करने के बाद मां यहां बैठीं है, जहां चंड़ का सर गिरा वहां मां चंडेश्वरी के नाम से मां की पूजा होने लगी औऊ जहां मुंड का सर गिरा वहां मां मुंडेश्वरी के नाम से पूजा अर्चना होने लगी, ग्रामीणों के मुताबिक मां चंडेश्वरी की पूर्व में बहुत ही छोटी सी मंदिर थी जिसमें मां चंडेश्वरी की प्रतिमा का लोगों के द्वारा पूजा अर्चना किया जाता था, बाद में स्थानीय ग्रामीण एवं आसपास के काफी लोगों के सहयोग से मां चंडेश्वरी की भव्य मंदिर ग्राम मदुरना में बनवाया गया, जहां दूर दुर से लोग दर्शन पूजन के लिए पहुंचते हैं।
मां चंडे़श्वरी धाम के मुख्य पुजारी राजेंद्र उपाध्याय के द्वारा बताया गया चैत नवरात्रि के प्रथम दिन से ही रक्त विहीन बली चढ़ाने का कार्य प्रारंभ हो गया है मगर अष्टमी कि तिथि को भारी संख्या में भीड़ जुटती है, सुबह सूर्य उदय से ही देर रात तक बलि चढ़ाने का कार्य चलता रहता है, चंडे़श्वरी धाम मनसा पूर्ति के लिए श्रद्धालुओं के बीच प्रचलित है, मां के दरबार से कोई भी श्रद्धालु खाली हाथ नहीं लौटते, दूर-दूर से लोग दर्शन पूजन को पहुंचते हैं, और उनकी मनोकामना पूर्ण होती है।