Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!
प्राण त्याग के अंतिम समय पर महिला ने गांव वालों को दो बातें कही। जिसमें पहली बात यह कहा था की इस गांव में अब कभी होली नहीं मनाई जाएगी और दूसरी अपनी पुत्री के बारे में कहा कि कोई जूठे बर्तन या किसी प्रकार के गलत काम नहीं कराएंगे। किन्तु उस महिला के मरने के कुछ ही दिन बाद उसकी पुत्री से लोग झूठे बर्तन और काम करवाने लगे। यह देख महिला ने उत्पन्न लिया और उसे भी अपने साथ अग्नि में समा ले गयी। जहां दोनों माँ-बेटी की समाधि आज भी मौजूद है। उसी स्थान को सती स्थान मंदिर के नाम से लोग जानते हैं जो काफी शक्तिशाली भी है। गांव की बुजुर्ग महिला और ग्रामीणों ने बताया कि उन्हें याद भी नहीं है कि इस गांव में कभी होली मनाई गई थी। हमारे पूर्वजों ने भी बताया कि कभी इस गांव में होली नहीं मनाई गई है।
हालांकि कुछ साल पूर्व गांव के ही एक व्यक्ति ने होली के दिन मालपुआ और पूरी बनाने के लिए कढ़ाई में जैसे ही तेल डालकर उसमें पुआ छानने के लिए मैदा डाला ही था कि कढ़ाई से तेल का इतना जबरदस्त छिड़काव हुआ कि घर के छप्पर में आग लग गई और उसी व्यक्ति के घर का छप्पर पूरी तरह जल गया। ऐसी मान्यता है कि जो भी व्यक्ति उस दिन होली मनाना चाहता है, उसके साथ बहुत बड़ी दुर्घटना होती है। इस गांव की बेटी दूसरे घर जाती है, तो वहां वह होली मना सकती है। लेकिन इस गांव का कोई बेटा चाहे वह दिल्ली मुम्बई पटना में ही क्यों न रहता हो वह होली के दिन किसी भी प्रकार का उत्सव नहीं मना सकता है। अन्य दिनों की तरह हीं लोग होली के दिन भी साधारण भोजन बनाते और खाते हैं। गांव के लोग से पूछे जाने पर बताया कि हम लोग वैशाख के समय विशुआ के दिन पुआ और पकवान बनाते है और होली खेलते है।