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जिले में इस प्राचीन मेले का अपना स्थान है तीन दशक से उक्त स्थान पर ग्रामीणों के सहयोग से मकर संक्रांति के मौके पर दो दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है, एनएच 30 से सटे होने से इसमें दूर-दूर से लोग शामिल होते हैं, मेले में चरखी, झूला सहित बच्चों के लिए कई मनोरंजन के साधन लगाए गए थे जिसका बच्चों के साथ युवाओं ने भी आनंद लिया, घरेलू उपयोग की वस्तुएं भी खूब बिक रही थी जिसमें चक्की, मुसल, ओखल सहित कई प्राचीन वस्तुएं शामिल थी, जिसकी लोग खरीदारी कर रहे थे।
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मेले में मिठाई की दुकानें भी लगी थी, जहां लोग अपने पसंद की मिठाई खरीद आनंद उठा रहे थे, कोरोना महामारी के संक्रमण से बेपरवाह बच्चे और युवाओं का उत्साह देखा जा सकता था, महंगाई के बावजूद मेले के प्रति लोगों का रुझान कम नहीं हुआ, मेला समिति के अध्यक्ष राधेश्याम चौधरी ने बताया कि दादर गांव में 36 वर्षों से मकर संक्रांति के मौके पर दो दिवसीय मेले का आयोजन किया जा रहा है 1984 में यहां शहीद कामरेड केशव मेला समिति द्वारा मेले की शुरुआत की गई थी इसमें मनोरंजन की सामग्री के साथ-साथ हर तरह के सामानों की बिक्री होती है।
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वैसे तो कोरोना संक्रमण को ले प्रशासन द्वारा मेले पर प्रतिबंध लगाया गया है लेकिन मेले में शामिल होने के लिए बहुत दूर-दूर से कारोबारी के यहां 5 दिन पहले से आ गए थे, नालंदा से झूला और चरखी वाले आए थे, जिन्हें मना नहीं किया जा सकता था, मेले में सरकारी तौर पर सुरक्षा कोई इंतजाम नहीं रहता इससे असुविधा होती है, मेले में अगल बगल के ग्रामीणों के अलावा काफी दूर-दूर से लोग आते हैं, मेला समिति के सदस्यों की तत्परता से मेले में शांति व्यवस्था बनी रहती है, हर सदस्य जिम्मेवारी के साथ चारों तरफ नजर रखता है।