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नक्सल प्रभावित जिलों के लिए विशेष केंद्रीय सहायता योजना के तहत जिला स्तर और पायलट प्रोजेक्ट के तहत गया के इन इलाकों में महुआ से तिलकुट बनाया जा रहा है, इस इलाके में 5 साल पहले महुआ से शराब बनाया जा रहा था, यहां के जंगलों में महुआ की बहुतायत होने के कारण महुआ के फूलों से शराब बनाने का धंधा यहां की महिलाओं के लिए आसान था इससे अच्छी कमाई भी कर लेते थे लेकिन इसी बीच बिहार में शराबबंदी लागू हो गई और स्थिति बदल गई जिसके बाद महिलाओं के सामने रोजी-रोटी की समस्या उत्पन्न हो गई।
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शराबबंदी लागू होने के बाद कुछ ही महीनों में शराब के धंधे में लिप्त होने के आरोप में एक हजार से ज्यादा लोग गिरफ्तार किए गए थे, जिला प्रशासन और वन विभाग ने ग्रामीणों को अपराधीकरण से बचाने, जंगल को आग से रोकने और वनस्पतियों को वैकल्पिक आजीविका के अवसर प्रदान करने के लिए स्थानीय ग्रामीणों को महुआ के फूल का संग्रह, प्रसंस्करण और विपणन में कुशल बनाने की योजना बनाई।
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इस प्रोजेक्ट की देखरेख कर रहे शिव मालवीय ने बताया कि इन महिलाओं को पहले तिलकुट बनाने का प्रशिक्षण दिया गया और इसकी शुरुआत की गई, गांव की कई महिलाएं अपने घरों में तिलकुट बनाने में जुटी है, इसमें गुड़ और चीनी इस्तेमाल नहीं किया जाता है, इस तिलकुट को तैयार करने में केवल तिल और महुआ के फूल का इस्तेमाल किया जाता है।
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इस योजना की शुरुआत करने वाले गया के तत्कालीन वन प्रमंडल पदाधिकारी अभिषेक कुमार ने बताया कि जो महिलाएं इन जंगलों में महुआ चुनकर शराब निर्माण करने वाले लोगों को बेचा करती थी आज उन्हें इस प्रोजेक्ट से जोड़ा गया है, ग्रामीणों के बीच जाल का वितरण किया गया है जिससे पेड़ से महुआ जमीन पर न गिरे, इन जालों पर गिरे और जिसे सुखाकर तिलकुट बनाने में लाया जाए।
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पिछले साल ही इसकी शुरुआत हुई थी इस कारण तिलकुट का बहुत उत्पादन नहीं हो सका, आमतौर पर मार्च और अप्रैल महीने में महुआ का फूल गिरता है, जिसे अभी से एकत्रित करने की योजना बनाई गई है वहीं इस साल से महुआ के फूल से कई प्रकार की मिठाइयां बनाने की भी योजना है।