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इस सम्बन्ध में बाबूलाल उरांव के भाई जितेंद्र उरांव ने बताया कि वे लोग पांच भाई थे, जिसमें बाबूलाल उरांव दूसरे नंबर पर था। उनकी मां कातो देवी बाबूलाल उरांव के पास ही रहती थी। गांव के रामदेव उरांव का भांजा हाल में बीमार पड़ गया था। इसी दौरान रविवार की शाम वह अत्यधिक कमजोरी के कारण मूर्छित होकर गिर गया। जिसे लेकर रामदेव उरांव का आरोप था कि उसके भांजे पर मेरी मां कातो देवी ने ही जादू टोना कर दिया है। जिसे लेकर उसने गांव के अलग-अलग बस्ती के आदिवासी परिवारों से शिकायत की थी और संबंधित परिवार को दंड देने की गुहार लगायी थी। जिसके बाद रामदेव के भांजे को मेरे भाई बाबूलाल उरांव के आंगन में सुला दिया और मेरी मां पर उसे ठीक करने का दबाब बनाने लगा। ऐसा करने में मां ने असर्थता जतायी। बाद में उस किशोर को इलाज के लिए पूर्णिया ले जाया गया।
वही इधर रात में फिर से ग्रामीणों की बैठक हुई और उसमें कातो देवी समेत बाबूलाल उरांव के पूरे परिवार को जिंदा जलाकर मारने का फैसला लिया गया। देर रात अचानक हरवे हथियार से लैस भीड़ ने बाबूलाल उरांव समेत उनके अन्य भाईयों के घर को घेर लिया। बाबूलाल उरांव के परिवार के पांच सदस्यों को बंधक बनाकर घर से चंद कदम की दूरी पर लेकर चले गए। इधर अन्य भाईयों को उनके घर में ही नजरबंद कर दिया गया और उनके मोबाइल आदि भी भीड़ ने अपने कब्जे में ले लिया। भाईयों व उनके परिवार को भी यह धमकी दी गई कि अगर उन लोगों ने पुलिस को सूचना दी तो उन लोगों को भी जलाकर मार दिया जाएगा। उन्मादी भीड़ ने पांचों सदस्यों को एक साथ बांधकर उस पर पेट्रोल छिड़क दिया और फिर आग फूंक दी। बाबूलाल के भाईयों ने बताया कि वे लोग चाह कर भी कुछ नहीं कर पाए। रात के करीब चार बजे शवों को ठिकाना लगाकर ग्रामीण वापस लौटे और फिर सुबह इसकी सूचना पुलिस तक पहुंची।