रोचक जानकारियां: भारतीय योग और तंत्र परंपरा में कुंडलिनी को मानव शरीर में छिपी हुई दिव्य ऊर्जा माना गया है, जो मेरुदंड (Spinal Cord) के आधार पर स्थित होती है। इसे “सर्पिणी शक्ति” भी कहा जाता है, क्योंकि यह कुंडलित (लिपटी हुई) सर्प की तरह प्रतीत होती है। कुंडली जागरण का अर्थ है इस सुप्त ऊर्जा को जागृत कर उसे सहस्रार चक्र (सिर के शीर्ष) तक ले जाना। इससे व्यक्ति में आध्यात्मिक, मानसिक और शारीरिक रूप से गहरा परिवर्तन होता है।
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कुंडली जागृत करने की विधि
कुंडलिनी जागरण एक गूढ़ और गंभीर साधना है, जिसे योग्य गुरु के मार्गदर्शन में ही करना चाहिए। इसकी कुछ प्रमुख विधियां इस प्रकार हैं:
1. ध्यान (Meditation)
प्रतिदिन शांत स्थान पर बैठकर गहरी श्वास लेकर ध्यान केंद्रित करें।
ध्यान को विशेष रूप से “आज्ञा चक्र” (भौंहों के बीच) या “मूलाधार चक्र” (रीढ़ की जड़) पर केंद्रित करें।
निरंतर अभ्यास से ऊर्जा का प्रवाह ऊपर की ओर बढ़ने लगता है।
2. प्राणायाम (Breathing Techniques)
अनुलोम-विलोम, भस्त्रिका और कपालभाति जैसे प्राणायाम से शरीर और मन को शुद्ध किया जाता है।
विशेष रूप से “नाड़ी शोधन प्राणायाम” ऊर्जा मार्ग (नाड़ियों) को खोलने में मदद करता है।
3. मंत्र जाप
“ॐ नमः शिवाय”, “ॐ ह्रीं क्लीं” या गुरु द्वारा दिए गए विशेष बीज मंत्र का जाप करें।
मंत्र ध्वनि से मस्तिष्क की तरंगें उच्च आवृत्ति पर कंपन करती हैं, जिससे ऊर्जा सक्रिय होती है।
4. आसन और बंध
पद्मासन, सिद्धासन, वज्रासन आदि स्थिर आसनों में बैठना लाभकारी है।
मूलबंध, उड्डीयानबंध और जालंधरबंध का अभ्यास ऊर्जा को ऊपर उठाने में सहायक होता है।
5. गुरु मार्गदर्शन
बिना गुरु के कुंडलिनी जागरण खतरनाक हो सकता है, इसलिए अनुभवी योगी या गुरु की देखरेख में साधना आवश्यक है।
कुंडली जागरण के फायदे
1. आध्यात्मिक उन्नति
व्यक्ति को आत्मज्ञान और ईश्वर से गहरा संबंध मिलता है।
जीवन का वास्तविक उद्देश्य समझ में आता है।
2. मानसिक शक्ति में वृद्धि
स्मरण शक्ति, एकाग्रता और निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है।
मन में स्थिरता और सकारात्मक विचार आते हैं।
3. शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार
रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
नाड़ी तंत्र और मस्तिष्क सक्रिय और संतुलित होता है।
4. भावनात्मक संतुलन
क्रोध, लोभ, भय जैसी नकारात्मक भावनाओं पर नियंत्रण मिलता है।
व्यक्ति में करुणा, प्रेम और दया का भाव बढ़ता है।
5. अलौकिक अनुभव
दिव्य प्रकाश, आंतरिक ध्वनि और गहरी शांति का अनुभव होता है।
कभी-कभी व्यक्ति को भविष्य की झलक और अंतर्ज्ञान की शक्ति प्राप्त होती है।
नोट: कुंडलिनी जागरण अत्यंत शक्तिशाली प्रक्रिया है। यदि इसे गलत तरीके से किया जाए तो मानसिक और शारीरिक असंतुलन हो सकता है। इसलिए इसे केवल गुरु के निर्देशन में, नियमित योग-ध्यान और संयमित जीवनशैली के साथ ही करना चाहिए।
यहाँ मैं आपको कुंडलिनी जागरण के लिए सुरक्षित और सरल घरेलू अभ्यास बता रहा हूँ, जो शुरुआती लोग भी रोज़मर्रा के जीवन में कर सकते हैं, और जो बिना किसी खतरे के मन, शरीर और आत्मा को संतुलित करने में मदद करेंगे।
1. सुबह-सुबह ध्यान (Morning Meditation)
सुबह उठकर स्नान के बाद किसी शांत स्थान पर पद्मासन या सिद्धासन में बैठें।
आँखें बंद करके गहरी श्वास लें और धीरे-धीरे छोड़ें।
ध्यान को रीढ़ की हड्डी के निचले हिस्से (मूलाधार चक्र) पर केंद्रित करें।
प्रतिदिन 10-15 मिनट करें।
2. नाड़ी शोधन प्राणायाम (Anulom-Vilom)
आराम से बैठकर दाएँ नथुने को अंगूठे से बंद करें और बाएँ से श्वास लें।
फिर बाएँ नथुने को बंद करके दाएँ से श्वास छोड़ें।
अब दाएँ से श्वास लें और बाएँ से छोड़ें।
प्रतिदिन 5-10 मिनट यह अभ्यास करने से ऊर्जा मार्ग शुद्ध होते हैं।
3. सरल मंत्र जप
रोज़ सुबह या रात में 5-10 मिनट तक “ॐ” या “ॐ नमः शिवाय” का जाप करें।
जप के समय मन को ध्वनि और कंपन पर केंद्रित करें।
यह मन को शांति देता है और ऊर्जा का प्रवाह बढ़ाता है।
4. सूर्य नमस्कार
प्रतिदिन 4-6 बार सूर्य नमस्कार करने से शरीर लचीला और ऊर्जावान बनता है।
इससे रक्त प्रवाह और चक्रों की सक्रियता बढ़ती है।
5. मूलबंध (Root Lock) का हल्का अभ्यास
पद्मासन या सिद्धासन में बैठें।
श्वास अंदर भरकर मल-मूत्र रोकने की तरह मूल भाग को हल्के से सिकोड़ें।
5-10 सेकंड रोककर छोड़ दें।
यह अभ्यास ऊर्जा को ऊपर उठाने में सहायक है, लेकिन इसे हल्के और सीमित समय के लिए करें।
6. सकारात्मक जीवनशैली
सात्विक भोजन (फल, सब्जियां, दूध आदि) लें।
नशा, मांसाहार, अधिक क्रोध और नकारात्मक विचारों से बचें।
सोने और उठने का समय नियमित रखें।
लाभ
मन और शरीर में संतुलन आता है।
एकाग्रता और स्मरण शक्ति बढ़ती है।
धीरे-धीरे चक्र सक्रिय होते हैं और कुंडलिनी जागरण की नींव मजबूत होती है।
तनाव और मानसिक बेचैनी कम होती है।
📌 ध्यान दें: ये अभ्यास केवल सुरक्षित प्रारंभिक चरण हैं। वास्तविक कुंडलिनी जागरण के लिए अनुभवी गुरु का मार्गदर्शन अनिवार्य है, ताकि ऊर्जा का प्रवाह नियंत्रित और संतुलित रहे।